
रायपुर : छिंद-कांसा टोकरी से गढ़ रही हैं आत्मनिर्भरता की नई कहानी
कोटानपानी की 100 से अधिक महिलाएं बना रही हैं परंपरा को पहचान, हर साल बन रही हैं “लखपति दीदियां”
📍 रायपुर | 01 जून 2025 | चौपाल न्यूज इनhttp://Chaupalnews.in
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में महिला सशक्तिकरण को नई दिशा मिल रही है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन “बिहान” के अंतर्गत राज्य की महिलाएं स्व-सहायता समूहों के ज़रिए आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रही हैं। इसी क्रम में जशपुर जिले के काँसाबेल विकासखंड स्थित आदिवासी बहुल गांव कोटानपानी की महिलाएं छिंद और कांसा घास से बनी हस्तनिर्मित टोकरियों के माध्यम से एक प्रेरणादायक और सफल आजीविका मॉडल पेश कर रही हैं।
परंपरा से पहचान तक : कोटानपानी की महिलाएं बनीं सशक्त उदाहरण
कोटानपानी की लगभग 100 महिलाएं अब परंपरागत हस्तकला को आधुनिक बाजार की ज़रूरतों से जोड़कर स्थायी आमदनी अर्जित कर रही हैं। ये महिलाएं छिंद (खजूर की सूखी पत्तियां) और कांसा (विशेष प्रकार की घास) से सुंदर, टिकाऊ और पर्यावरण-संवेदनशील टोकरियां बना रही हैं, जिनकी मांग छत्तीसगढ़ से लेकर देशभर में बढ़ रही है।
इस प्रयास को छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड और बिहान मिशन का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ है। इसके चलते यहां की महिलाएं अब “लखपति दीदी” की श्रेणी में आ चुकी हैं।
30 वर्षों पुरानी कला को नई पहचान
इस कला की शुरुआत लगभग 30 वर्ष पहले हुई थी, जब मन्मति नामक किशोरी ने इसे अपने ननिहाल पगुराबहार (फरसाबहार विकासखंड) से सीखकर कोटानपानी में टोकरियां बनानी शुरू की। पहले यह कला सिर्फ घरेलू उपयोग तक सीमित थी, लेकिन समय के साथ इसे अन्य महिलाओं ने भी अपनाया और धीरे-धीरे यह व्यवसाय में बदल गई।
वर्ष 2017 में स्व-सहायता समूहों के गठन से इस कार्य को संगठित रूप मिला। हरियाली, ज्ञान गंगा, और गीता नामक समूहों ने इस पहल की नींव रखी। वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के साथ जुड़ने के बाद इन महिलाओं को प्रशिक्षण, प्रदर्शनी में भागीदारी और राष्ट्रीय बाजार तक पहुंच मिली।
प्राकृतिक, सांस्कृतिक और व्यावसायिक महत्व
छिंद और कांसा से बनी यह टोकरी न केवल सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी उत्कृष्ट है। विवाह, देवपूजन, छठ पर्व आदि धार्मिक अवसरों पर इसका विशेष उपयोग होता है। टोकरियों को मजबूत और आकर्षक बनाने के लिए छिंद की पत्तियों को कांसा घास पर लपेटा जाता है।
यह उत्पाद आज न केवल स्थानीय बाजारों, बल्कि राज्य एवं राष्ट्रीय मेलों में भी अपनी पहचान बना चुका है। जशप्योर ब्रांड के तहत इन टोकरियों की बिक्री देशभर में हो रही है।
हर घर में समृद्धि की टोकरी
आज कोटानपानी की महिलाएं न केवल टोकरियों का निर्माण, बल्कि कच्चे माल का संग्रहण और विक्रय भी खुद कर रही हैं। वे प्रति किलोग्राम 150 रुपये की दर से कच्चा माल बेचती हैं। जिले के 15 से अधिक समूह इस कार्य से जुड़ चुके हैं, जिससे 100 से अधिक महिलाओं को सतत आय का स्रोत मिला है।
सरकारी सहयोग और सामूहिक प्रयास से बदली तस्वीर
बिहान मिशन, हस्तशिल्प बोर्ड, और स्थानीय प्रशासन के समन्वित प्रयासों से यह परंपरा अब आजीविका का सशक्त माध्यम बन चुकी है। महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं, बल्कि उन्होंने पूरे क्षेत्र को प्रेरणा दी है कि परंपरा को अपनाकर भी प्रगति की नई राहें बनाई जा सकती हैं।
🖋️ रिपोर्टर: चौपाल न्यूज इन, रायपुरhttp://Chaupal new in