गुरू घासीदास जी ने “सतनाम” (सत्य का नाम) के सिद्धांत को प्रचलित किया। उनका मानना था कि सत्य और ईश्वर एक हैं, और इंसान को ईश्वर की पहचान करने के लिए पवित्र और सच्चे आचरण की आवश्यकता है। उनके उपदेशों में भक्ति, सेवा, और समाज में समरसता का महत्व था। उन्होंने समाज के निचले तबके, विशेष रूप से दलितों, को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने की कोशिश की।

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गुरू घासीदास जी का संदेश था कि हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के सम्मान मिलना चाहिए और जीवन में सत्य की ओर अग्रसर होना चाहिए। उनके उपदेशों ने छत्तीसगढ़ में विशेष रूप से प्रभाव डाला और उनके अनुयायी आज भी उनके मार्ग पर चलकर समाज में सुधार की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

गुरू घासीदास जी की जयंती उनके अनुयायियों के लिए एक धार्मिक और सामाजिक अवसर है, जिसमें वे उनके उपदेशों को याद करते हैं और उनके द्वारा बताए गए जीवन के आदर्शों को अपनाने का संकल्प लेते हैं।

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